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Caste census: एक आवश्यक कदम या सामाजिक विघटन का कारण

Caste census: एक आवश्यक कदम या सामाजिक विघटन का कारण

जातिगत जनगणना : एक आवश्यक कदम या सामाजिक विघटन का कारण: एक आवश्यक कदम या सामाजिक विघटन का कारण

भारत विविधताओं का देश है, जहा धर्म, भाषा क्षेत्र और जाति जैसी अनेक पहचाने समाज को परिभाषित करती है। इन सब में से जाति एक ऐसी संरचना है जो सदियों से भारतीय समाज में गहराई से जमी हुई है। स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद भी जाति का प्रभाव हमारी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसी संदर्भ में जातिगत जनगणना की मांग फिर से प्रबल हो गई है।

जातिगत जनगणना क्या है?

जातिगत प्रत्येक 10 वर्षो में भारत सरकार द्वारा की जाती है, जिसमे नागरिको की संख्याओं, लिंग, आयु, शिक्षा, रोजगार इत्यादि से सम्बंधित आकड़े इक्क्ठा किये जाते है। लेकिन 1931 के पश्चात सरकारी जनगणना में जातिगत आकड़े एकत्र नहीं किये गए है। (अनुसूचित जाति और जनजाति को छोड़कर)  जातिगत जनगणना का अर्थ है, की सरकार प्रत्येक नागरिक से उसकी जाति के बारे में जानकारी इक्क्ठा करे और उसे सांख्यिकीय रूप से प्रकाशित करे।

जातिगत जनगणना की मांग क्यों?

जातिगत जनगणना की मांग करने वालो का कहना है, की आरक्षण की निति जो सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण आधार है, वास्तविक आंकड़ों के आभाव से अधूरी है। यदि सरकार के पास यह जानकारी नहीं है की किस की जनसँख्या कितनी है, तो ओबीसी के लिए क्यों नहीं? उनका तर्क है की सभी वर्गों को सामान मान्यता मिलनी चाहिए ताकि नीतियों और योजनाए यथार्थ आधार पर बनाई जा सके।

जातिगत जनगणना के लाभ :

इतिहास और पृष्ठ भूमि :

ब्रिटिश काल में 1871 में पहली बार जनगणना हुई थी। 1931 तक जाति आधारित डेटा संग्रह किया जाता रहा। इसके बाद यह परम्परा बंद हो गई क्योंकि यह माना गया है कि जातिगत पहचान को बढ़ावा देना सामाजिक एकता के लिए घातक हो सकता है। स्वतंत्र भारत में, सरकार ने जातिगत जनगणना से परहेज किया, हालाँकि मंडल आयोग (1979) द्वारा OBC की जनसँख्या का अनुमान लगाया था (करीब 52%) लेकिन यह कोई सटीक जनगणना नहीं थी।

जातिगत जनगणना के विरोध में तर्क :

हालाँकि जातिगत जनगणना से जातिवाद के कई समर्थक है, इसके विरोध में भी कुछ महत्वपूर्ण दिए जाते है:

हालिया घटनाक्रम:

हाल के वर्षो में जातिगत जनगणना की मांग तेज हुई है। बिहार में 2023 में राज्य सरकार ने अपनी और से जातिगत सर्वेक्षण कराया जिसके परिणामो में OBC और EBC की संख्या राज्य की कुल जनसँख्या का 63% से अधिक पाई गई। इससे यह सवाल फिर उठा की क्या केंद्र सरकार को भी इस तरह की जातिगत जनगणना करनी चाहिए।

2021 की जनगणना में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना से इंकार किया केवल SC और ST तक ही सिमित रहने की बात कही। लेकिन कई राज्यों और राज दलों ने इसके विरोध में आवाज उठाई और मांग की कि पुरे देश में OBC और अन्य जातिंयो कि सही जनसँख्या को दर्ज किया जाये।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य :

अन्य देशो में जाति आधारित जनगणना का प्रचलन नहीं है, लेकिन नस्ल, धर्म या भाषा के आधार पर जानकारी संग्रह होती है। अमेरिका में “रेस” और  “अथीनिस्टी” के आधार पर जानकारी एकत्र कि जाती है। जिससे वह कि नीतिया प्रभावित होती है। भारत में जाति एक सामाजिक यथार्थ है, और उससे मुँह मोड़ना यथार्थ से दूर भागने जैसा होगा।

 

 

निष्कर्ष :

जातिगत जनगणना एक जटिल लेकिन महत्वपूर्ण विषय है। यह समाज में समावेशित और समानता सुनिश्चित करना चाहिए कि देता का प्रयोग केवल नीतिगत सुधार के लिए हो, न कि राजनितिक लाभ के लिए। यदि पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ जातिगत जनगणना कराई जाती है तो यह एक सकरात्मक कदम हो सकता है। जो भारत को एक अधिक समान और समावेशी समाज कि और ले जा सकता है।

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