Charan Singh: The Champion of Farmers and Honest Leadership in Indian Politics

Charan Singh: The Champion of Farmers and Honest Leadership in Indian Politics

Charan Singh: The Champion of Farmers and Honest Leadership in Indian Politics

Charan Singh: The Champion of Farmers and Honest Leadership in Indian Politics

भारतीय राजनीति में कई नेता हुए है जो जनहित, सादगी और सेवा के प्रतिक रहे है। लेकिन यदि किसी एक व्यक्ति को भारतीय किसानो का सबसे बड़ा हितेषी खा जाये, तो वह है, चौधरी चरण सिंह। उन्होंने देश की राजनीति में किसानो की आवाज बुलंद की और उन्हें समाज में उनका उचित स्थान दिलाने का संघर्ष किया। वे भारत के 5वें  प्रधानमंत्री बने और अपने सक्षिप्त कार्यालय में भी किसानो की बेहतरी के लिए ऐतिहासिक नीतियाँ शुरू की।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक सामान्य जाट किसान परिवार में हुआ। उनका पूरा जीवन ग्रामीण परिवेश में बीता और वही से उन्होंने किसानो की समस्याओ को गहराई से समझा।

उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से स्नांतक और फिर कानून की डिग्री प्राप्त की। पढाई में अत्यंत मेधावी होने के बाद भी उन्होंने वकालत के साथ-साथ समाज सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाया। 

स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

चरण सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रूप से जुड़े। वें महात्मा गाँधी के आह्वान पर सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए और कई बार जेल भी गए। उनका विश्वास था की भारत को आजादी सिर्फ अंग्रेजो से नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक असमानता से भी पाना है।

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उन्होंने सवतंत्रता संग्राम के दौरान जमींदारी का खुला विरोध किया और किसानो को उनका हक़ दिलाने के लिए आवाज उठाई।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

चौधरी चरण सिंह ने 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल रहे और 1930, 1940 और 1942 में कई बार जेल गए। 1937 में वे पहली बार संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की विधानसभा में छपरौली से चुने गए। इस दौरान उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।

1946 में, वे पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय और सूचना जैसे विभिन्न विभागों में काम किया। 1951 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया, जहां उन्होंने न्याय और सूचना विभाग का कार्यभार संभाला। बाद में, उन्हें राजस्व और कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई, जिसने उनके किसान-केंद्रित दृष्टिकोण को और मजबूत किया।

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किसानों के लिए ऐतिहासिक सुधार

चौधरी चरण सिंह को किसानों के हित में किए गए उनके ऐतिहासिक सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और भूमि सुधारों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 में, उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम पारित हुआ, जिसने लाखों किसानों को जमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाई और उन्हें अपनी जमीन का मालिकाना हक प्रदान किया। इस अधिनियम ने उत्तर भारत में एक नई सामाजिक और आर्थिक क्रांति की शुरुआत की।

इसके अलावा, उन्होंने 1938 में कृषि उपज बाजार विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य किसानों को व्यापारियों के शोषण से बचाना था। यह विधेयक बाद में देश के कई अन्य राज्यों में भी अपनाया गया। 1953 में, उन्होंने चकबंदी अधिनियम लागू किया, जिसने खेतों के बिखरे हुए टुकड़ों को एकत्रित कर किसानों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद की। 1939 में पेश किया गया ऋण मोचन विधेयक भी किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

चरण सिंह ने हमेशा छोटे और मध्यम किसानों के हितों को प्राथमिकता दी। वे मानते थे कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान हैं, और ग्रामीण भारत का विकास ही देश की समृद्धि का आधार है। उनके ये सुधार न केवल आर्थिक थे, बल्कि सामाजिक समानता और ग्रामीण सशक्तिकरण के लिए भी महत्वपूर्ण थे।

कांग्रेस से अलगाव और नई राह

चौधरी चरण सिंह शुरू में कांग्रेस के प्रबल समर्थक थे, लेकिन 1950 के दशक में जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी नीतियों, विशेष रूप से सामूहिक खेती (Co-operative Farming) के प्रस्ताव, से उनका मतभेद बढ़ने लगा। 1959 में, नागपुर में आयोजित कांग्रेस के 64वें सत्र में, उन्होंने सामूहिक खेती के खिलाफ एक घंटे का जोरदार भाषण दिया, जिसमें उन्होंने इसे भारतीय वास्तविकताओं के लिए अनुपयुक्त बताया। इस भाषण ने उन्हें किसानों के बीच तो लोकप्रिय बनाया, लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से उनकी दूरी बढ़ा दी।

1967 में, कांग्रेस के साथ बढ़ते मतभेदों के कारण, चरण सिंह ने पार्टी छोड़ दी और 16 अन्य विधायकों के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) की स्थापना की। उसी वर्ष, उन्होंने संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) के नेता के रूप में उत्तर प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री का पद संभाला। हालांकि, उनकी यह सरकार केवल 1968

तक चली, लेकिन इसने ग्रामीण भारत और किसानों के लिए उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया।

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राष्ट्रीय राजनीति में योगदान

चौधरी चरण सिंह ने 1970 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला, लेकिन उनकी नजर अब राष्ट्रीय राजनीति पर थी। 1977 में, आपातकाल के बाद, उन्होंने जनता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनता पार्टी की सरकार में वे पहले गृह मंत्री और बाद में उप-प्रधानमंत्री बने। 1979 में, जनता पार्टी में मतभेदों के बाद, उन्होंने जनता पार्टी (सेकुलर) का गठन किया और 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।

हालांकि उनका प्रधानमंत्री कार्यकाल केवल छह महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने किसानों और ग्रामीण विकास के लिए कई नीतियां लागू करने की कोशिश की। उनकी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को मजबूत करने और किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दिया।

ईमानदार नेतृत्व और सादगी

चौधरी चरण सिंह का नेतृत्व उनकी ईमानदारी और सादगी के लिए जाना जाता है। वे भ्रष्टाचार, पक्षपात और अक्षमता के सख्त खिलाफ थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने मंत्रियों के वेतन और विशेषाधिकारों में कटौती की और प्रशासन में पारदर्शिता लाने की कोशिश की। उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे हमेशा साधारण जीवन जीते थे और अपने खाली समय में पढ़ने-लिखने में बिताते थे।

उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर किसान जैसे विषय शामिल थे। उनके लेखन में ग्रामीण भारत के प्रति उनकी गहरी समझ और विकास के प्रति उनकी सोच झलकती है।

विरासत और सम्मान

चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। उनके सम्मान में, हर साल 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। 2024 में, भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया, जो उनके योगदान का एक बड़ा प्रमाण है।

उनके बेटे अजीत सिंह और पोते जयंत चौधरी ने उनकी राजनीतिक विरासत को राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के माध्यम से आगे बढ़ाया। चरण सिंह ने न केवल किसानों को एक नई आवाज दी, बल्कि भारतीय राजनीति में ग्रामीण भारत को केंद्र में लाकर एक नया अध्याय लिखा।

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निष्कर्ष

चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसानों और ग्रामीण भारत के लिए समर्पित कर दी। उनकी नीतियों, सुधारों और ईमानदार नेतृत्व ने न केवल उत्तर भारत के किसानों को सशक्त किया, बल्कि पूरे देश में ग्रामीण विकास की नींव रखी। उनकी दूरदृष्टि और सादगी आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। चौधरी चरण सिंह न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक विचारधारा थे, जो ग्रामीण भारत की आत्मा को समझती थी और उसे सशक्त बनाने के लिए काम करती थी।

 

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