Colonel Sofia Qureshi: the heroine of Operation Sindoor and the inspiration of the Indian Army
Colonel Sofia Qureshi: the heroine of Operation Sindoor and the inspiration of the Indian Army
Colonel Sofia Qureshi भारतीय सशस्त्र बलों में एक प्रेरणादायक और साहसी व्यक्तित्व हैं। वह भारतीय सेना के सिग्नल कोर में एक अधिकारी के रूप में लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए, नेतृत्व और राष्ट्रीय सेवा के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के साथ एक मिसाल कायम कर चुकी हैं। एक बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में भारतीय सेना के दस्ते का नेतृत्व करने से लेकर Operation Sindoor जैसे उच्च जोखिम वाले मिशन पर राष्ट्र को जानकारी देने तक, उनका करियर उत्कृष्टता और सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह लेख उनकी यात्रा, उपलब्धियों और भारतीय सैन्य परिदृश्य पर उनके गहरे प्रभाव की पड़ताल करता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
Sofia Qureshi का जन्म 1981 में गुजरात के वडोदरा में हुआ था। वह एक ऐसे परिवार में पली-बढ़ीं, जिसका सैन्य इतिहास गहरा था। उनके दादा भारतीय सेना में सेवा दे चुके थे, और उनके पिता, ताज मोहम्मद कुरैशी, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स कोर (ईएमई) का हिस्सा थे, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लिया था। इस सेवा की विरासत ने सोफिया और उनकी जुड़वां बहन, शायना सुनसारा, को गहराई से प्रभावित किया। उनकी दादी द्वारा सुनाई गई वीरता की कहानियों ने उनकी देशभक्ति को और प्रज्वलित किया। उनके भाई, संजय कुरैशी ने बताया कि उनके परदादा की 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी ने भी परिवार की सैन्य विरासत को आकार दिया।
सोफिया ने अपनी स्कूली शिक्षा वडोदरा के केंद्रीय विद्यालय, ईएमई से पूरी की। उन्होंने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (एमएसयू), वडोदरा से रसायन विज्ञान में स्नातक (1992–1995) और जैव रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर (1995–1997) की डिग्री हासिल की। उनकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने उन्हें विश्लेषणात्मक कौशल प्रदान किया, जो बाद में उनके सैन्य करियर में उपयोगी साबित हुआ। जनवरी 2025 में, उन्होंने एमएसयू के जैव रसायन विभाग का दौरा किया, जहां उन्होंने अपनी यात्रा से छात्रों और शिक्षकों को प्रेरित किया।
भारतीय सेना में शामिल होना
1999 में, 18 वर्ष की आयु में, Sofia Qureshi ने चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी के माध्यम से भारतीय सेना में प्रवेश किया और सिग्नल कोर में कमीशन प्राप्त किया, जो सैन्य संचार में विशेषज्ञता रखता है। सेना में शामिल होने का उनका निर्णय राष्ट्र की सेवा के प्रति जुनून से प्रेरित था। वह और उनकी बहन कभी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के अधीन रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक बनने का सपना देखती थीं। उनकी शुरुआती तैनाती में आतंकवाद विरोधी क्षेत्रों और सिग्नल रेजिमेंट में चुनौतीपूर्ण कार्य शामिल थे, जहां उन्होंने अपनी अनुकूलनशीलता और समर्पण का प्रदर्शन किया।
सोफिया का करियर कई पुरस्कारों और सम्मानों से भरा हुआ है। उन्होंने ऑपरेशन पराक्रम के दौरान पंजाब सीमा पर अपनी भूमिका के लिए जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) प्रशंसा पत्र प्राप्त किया और पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ राहत कार्यों के दौरान संचार प्रयासों के लिए सिग्नल ऑफिसर-इन-चीफ (एसओ-इन-सी) प्रशंसा पत्र हासिल किया। इन शुरुआती उपलब्धियों ने उनकी परिचालन उत्कृष्टता और नेतृत्व क्षमता को उजागर किया।
बाधाओं को तोड़ना:
अभ्यास फोर्स 18
मार्च 2016 में, तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल Sofia Qureshi ने पुणे में आयोजित बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास, अभ्यास फोर्स 18 में भारतीय सेना के दस्ते का नेतृत्व करके इतिहास रच दिया। यह अभ्यास, भारत द्वारा आयोजित सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अभ्यास था, जिसमें 18 आसियान प्लस देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस, जापान और दक्षिण कोरिया ने भाग लिया। 40 सदस्यीय भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए, सोफिया सभी भाग लेने वाले देशों में एकमात्र महिला दस्ता कमांडर थीं, जो भारत की सैन्य क्षेत्र में लैंगिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
अभ्यास फोर्स 18 का ध्यान शांति स्थापना कार्यों (पीकेओ) और मानवीय खदान कार्रवाई (एचएमए) पर केंद्रित था। सोफिया का नेतृत्व सैनिकों को प्रशिक्षित करने और अंतरराष्ट्रीय बलों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रहा। उनकी नियुक्ति उनकी असाधारण योग्यता और नेतृत्व क्षमता पर आधारित थी। इस उपलब्धि ने न केवल उनके करियर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव चिह्नित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारतीय सेना में महिलाएं उच्च-स्तरीय जिम्मेदारियों को संभालने में सक्षम हैं।
Operation Sindoor और अन्य मिशन
Sofia Qureshi ने कई उच्च-जोखिम वाले मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। Operation Sindoor , जिसके बारे में उन्होंने राष्ट्र को जानकारी दी, एक ऐसी घटना थी जिसने उनकी रणनीतिक संचार कौशल और संकट प्रबंधन क्षमताओं को प्रदर्शित किया। हालांकि इस ऑपरेशन के विवरण गोपनीय हैं, लेकिन उनकी भूमिका ने उनके शांत और पेशेवर दृष्टिकोण को उजागर किया। इसके अलावा, उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियानों और आपदा राहत मिशनों में योगदान दिया, जहां उनकी संचार विशेषज्ञता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनके नेतृत्व में, सिग्नल कोर ने संचार प्रणालियों को आधुनिक बनाने और साइबर युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने में प्रगति की। सोफिया ने डिजिटल युद्ध के युग में सुरक्षित और विश्वसनीय संचार नेटवर्क की आवश्यकता को समझा और इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रेरणा और प्रभाव
Colonel Sofia Qureshi केवल एक सैन्य अधिकारी नहीं हैं; वह एक प्रेरणा हैं। उनकी यात्रा उन युवा महिलाओं के लिए एक मिसाल है जो सेना में शामिल होने का सपना देखती हैं। उन्होंने साबित किया है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और साहस के साथ, कोई भी बाधा पार की जा सकती है। उनके नेतृत्व ने भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका को फिर से परिभाषित किया है, और उनकी उपलब्धियां लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
2025 में, एमएसयू में अपने दौरे के दौरान, सोफिया ने छात्रों को कठिन परिस्थितियों में दृढ़ रहने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जोर दिया कि सेना में सेवा केवल शारीरिक शक्ति के बारे में नहीं है, बल्कि मानसिक दृढ़ता, रणनीतिक सोच और देश के प्रति प्रेम के बारे में भी है। उनकी कहानी ने कई लोगों को प्रेरित किया, विशेष रूप से उन महिलाओं को, जो सैन्य करियर पर विचार कर रही हैं।
निजी जीवन और मूल्य
Colonel Sofia Qureshi एक निजी व्यक्ति हैं, जो अपने पेशेवर जीवन को सुर्खियों में रखती हैं। हालांकि, उनके परिवार ने उनके दृढ़ संकल्प और देशभक्ति के बारे में कई कहानियां साझा की हैं। उनकी जुड़वां बहन, शायना, उनकी सबसे बड़ी समर्थक रही हैं, और दोनों बहनें एक-दूसरे के सपनों को प्रोत्साहित करती हैं। सोफिया की विनम्रता और कर्तव्य के प्रति समर्पण उनके सहयोगियों और अधीनस्थों द्वारा प्रशंसित है।वह अपने खाली समय में पढ़ने और फिटनेस पर ध्यान देती हैं, जो उनकी अनुशासित जीवनशैली को दर्शाता है। वह सैन्य इतिहास और रणनीति में गहरी रुचि रखती हैं, जो उनके पेशेवर विकास में योगदान देता है।
निष्कर्ष
Colonel Sofia Qureshi भारतीय सेना में एक सच्ची अग्रणी हैं। उनकी उपलब्धियां, अभ्यास फोर्स 18 में ऐतिहासिक नेतृत्व से लेकर Operation Sindoor जैसे मिशनों में उनकी भूमिका तक, उनकी असाधारण क्षमता और समर्पण को दर्शाती हैं। वह केवल एक सैन्य अधिकारी नहीं हैं, बल्कि एक प्रतीक हैं कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं। उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी, और उनका योगदान भारतीय सेना के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।