Morarji Desai: An Epochal Man of India

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मोरारजी रणछोड़जी देसाई भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी, कुशल राजनेता और देश के चौथे प्रधानमंत्री थे। उनका जीवन देश सेवा, सिद्धांतों की दृढ़ता और नैतिकता का प्रतीक है। 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली गांव में जन्मे मोरारजी देसाई ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। वे पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1977 से 1979 तक भारत का नेतृत्व किया। उनकी उपलब्धियां, गांधीवादी सिद्धांतों के प्रति निष्ठा और भारत-पाकिस्तान संबंधों में शांति स्थापना के प्रयास उन्हें एक विशेष स्थान प्रदान करते हैं। इस लेख में उनके जीवन, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, राजनीतिक करियर और विरासत पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मोरारजी देसाई का जन्म गुजरात के बुलसर जिले (वर्तमान में वलसाड) के भदेली गांव में एक गुजराती अनवील ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता रणछोड़जी नागरजी देसाई एक स्कूल शिक्षक थे और माता वाजीबेन देसाई थीं। आठ भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के नाते, मोरारजी ने बचपन से ही जिम्मेदारी का भाव सीखा। उनके पिता एक सख्त अनुशासक थे, जिन्होंने उन्हें कड़ी मेहनत और सत्यनिष्ठा का महत्व सिखाया। मोरारजी की प्रारंभिक शिक्षा सावरकुंडला के कुंडला स्कूल (वर्तमान में जे.वी. मोदी स्कूल) में हुई, और बाद में वे वलसाड के बाई अवा बाई हाई स्कूल में पढ़े। उन्होंने 1918 में बॉम्बे विश्वविद्यालय (वर्तमान में मुंबई विश्वविद्यालय) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

स्नातक होने के बाद, मोरारजी ने ब्रिटिश शासन के तहत बॉम्बे प्रांत की सिविल सेवा में नौकरी शुरू की और गोधरा में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया। हालांकि, 1927-28 के दंगों के दौरान हिंदुओं के प्रति नरम रवैया अपनाने के आरोप में उन पर जांच हुई, जिसके बाद उन्होंने मई 1930 में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

मोरारजी देसाई का सिविल सेवा से इस्तीफा उनकी स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति बढ़ती रुचि का परिणाम था। महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों से प्रेरित होकर, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने 1930 के नमक सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ एक ऐतिहासिक विरोध था। उनके इस समर्पण के कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्होंने कई वर्ष जेल में बिताए।

मोरारजी ने गुजरात में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस की जमीनी उपस्थिति को मजबूत किया। उनकी संगठनात्मक क्षमता और अनुशासन ने उन्हें जनता और सहयोगियों के बीच सम्मान दिलाया। जेल में भी, वे अपने अटल संकल्प और गांधीवादी मूल्यों के प्रति निष्ठा से साथियों को प्रेरित करते रहे।

राजनीतिक करियर

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, मोरारजी देसाई का राजनीतिक करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। उन्होंने बॉम्बे प्रांत और बाद में गुजरात में कई महत्वपूर्ण पद संभाले। 1952 में, वे बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री बने, जहां उन्होंने प्रशासनिक और सामाजिक सुधारों को लागू किया। उनके कार्यकाल में शिक्षा, बुनियादी ढांचे और सांप्रदायिक सौहार्द पर ध्यान दिया गया। हालांकि, राज्य में शराबबंदी लागू करने का उनका निर्णय विवादास्पद रहा, जो उनकी गांधीवादी सोच को दर्शाता था।

1956 में, मोरारजी ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में शामिल हुए। उनकी प्रशासनिक कुशलता और आर्थिक समझ उनकी नीतियों में स्पष्ट थी। बाद में, नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में वित्त मंत्री के रूप में, उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए, हालांकि उनकी कुछ नीतियां, जैसे गोल्ड कंट्रोल एक्ट, विवादों में रहीं।

मोरारजी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा ने कांग्रेस पार्टी के भीतर तनाव पैदा किया। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद, वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन इंदिरा गांधी से हार गए। उन्होंने इंदिरा के मंत्रिमंडल में उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन वैचारिक मतभेदों और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण 1969 में इस्तीफा दे दिया। 1975-77 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया।

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प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1977-1979)

आपातकाल भारत के लोकतंत्र का एक काला अध्याय था, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश, राजनीतिक गिरफ्तारियां और नागरिक स्वतंत्रता का हनन हुआ। इस दौरान मोरारजी देसाई सहित कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। आपातकाल हटने के बाद, मोरारजी ने जनता पार्टी के बैनर तले विपक्षी दलों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी की जीत ने कांग्रेस के प्रभुत्व को समाप्त कर एक ऐतिहासिक बदलाव लाया।

प्रधानमंत्री के रूप में, मोरारजी ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को पुनर्जनन, प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों को उलटने पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी सरकार ने मुद्रास्फीति और बेरोजगारी से निपटने के लिए आर्थिक सुधार पेश किए, जिसमें ग्रामीण विकास और लघु उद्योगों पर जोर दिया गया। मोरारजी ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर बनाने के लिए भी प्रयास किए और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया-उल-हक के साथ कूटनीतिक वार्ता की। उनकी विदेश नीति अहिंसा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित थी।

हालांकि, मोरारजी का कार्यकाल जनता पार्टी के भीतर आंतरिक कलह से प्रभावित हुआ। गठबंधन सहयोगियों के बीच वैचारिक मतभेद और नेतृत्व के लिए संघर्ष ने सरकार को कमजोर किया। 1979 में, दलबदल के कारण जनता पार्टी सरकार गिर गई, जिसके बाद मोरारजी को इस्तीफा देना पड़ा। उनके संक्षिप्त कार्यकाल के बावजूद, लोकतंत्र की बहाली और नैतिक शासन को बढ़ावा देने में उनका योगदान उल्लेखनीय है।

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व्यक्तिगत विश्वास और जीवनशैली

मोरारजी देसाई गांधीवादी दर्शन के कट्टर अनुयायी थे, जो सादगी, अहिंसा और आत्म-अनुशासन का अभ्यास करते थे। वे शाकाहारी थे और शराबबंदी के समर्थक थे, यह मानते हुए कि शराब का सेवन सामाजिक प्रगति में बाधक है। मोरारजी अपनी असामान्य स्वास्थ्य प्रथाओं, जैसे मूत्र चिकित्सा, के लिए भी जाने जाते थे, जिसका उन्होंने खुलकर समर्थन किया। हालांकि इससे उनकी आलोचना और मजाक उड़ा, लेकिन वे अपने विश्वासों पर अडिग रहे और समग्र स्वास्थ्य के महत्व पर जोर दिया।

उनकी सादगी भरी जीवनशैली और नैतिक आचरण ने उन्हें अपने समय के कई राजनेताओं से अलग किया। प्रधानमंत्री के रूप में भी, उन्होंने विलासिता से परहेज करते हुए सादगी से जीवन जिया। उनकी सिद्धांतों के प्रति अडिगता ने उन्हें कभी-कभी कठोर बनाया, लेकिन इससे उन्हें एक ईमानदार और सैद्धांतिक नेता के रूप में सम्मान भी मिला।

विरासत और प्रभाव

मोरारजी देसाई की विरासत बहुआयामी है। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध के प्रति अपनी अटल प्रतिबद्धता के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता में योगदान दिया। एक राजनीतिक नेता के रूप में, उन्होंने भारत की प्रशासनिक और आर्थिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल, हालांकि संक्षिप्त था, आपातकाल के बाद लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली और भारत में गठबंधन राजनीति की नींव रखने के लिए याद किया जाता है।

मोरारजी के विदेश नीति में प्रयास, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए, क्षेत्रीय शांति के प्रति उनकी दृष्टि को दर्शाते हैं। ग्रामीण विकास और लघु उद्योगों पर उनका जोर बाद की आर्थिक नीतियों को प्रभावित करता रहा। सबसे बढ़कर, उनका जीवन दृढ़ विश्वास और नैतिक नेतृत्व के महत्व का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

उनके योगदान के सम्मान में, मोरारजी देसाई को भारत और विदेशों में कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी मृत्यु 10 अप्रैल 1995 को हुई, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। वे उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने भारत के लोकतांत्रिक और नैतिक मूल्यों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

Morarji Desai: An Epochal Man of India

निष्कर्ष

मोरारजी देसाई का जीवन और कार्य भारत के इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक, उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी। उनकी सादगी, सिद्धांतों के प्रति निष्ठा और देश के प्रति समर्पण उन्हें एक युग पुरुष बनाता है। आज के समय में, जब नैतिकता और नेतृत्व की बात आती है, मोरारजी देसाई का जीवन एक आदर्श उदाहरण के रूप में सामने आता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा के साथ कोई भी व्यक्ति समाज और देश के लिए सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

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